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Friday, August 14, 2020

Kashmir

 



।।  कश्मीर ।।

 

एक रूह हो तुम कश्मीर

वैसी,

जिस को जिस्म की ज़रूरत नहीं।

एक शांत म्लान सी

जैसे,

एक निद्रा से उठती गिरती विरहन।

कही तो एक ध्वनि भी हो

जिसको,

खामोशी के हर सुर की मदहोशी हो।

सदियो का दास्तान हो

जो

एक रात मे ठहरी हो।

बाहो मे झेलम हे तेरे

जिस मे

मेरे दुआ का अक्स दिखता हे।

मुझे भी सलाम देने कल

मेरे दोस्त मेरे साथी

तू भी कश्मीर चले आना।